कुछ न कुछ तो उसके मेरे दरमियाँ बाक़ी रहा
कुछ न कुछ तो उसके मेरे दरमियाँ बाक़ी रहा चोट बेशक भर गई लेकिन निशां बाक़ी रहा गाँव भर की धूप को हँसकर उठा लेता था जो कट गया पीपल वही तो क्या वहाँ बाक़ी रहा आग से बस्ती जला डाली मगर हैरत है ये किस तरह बस्ती में मुखिया का मकां बाक़ी … Continue reading कुछ न कुछ तो उसके मेरे दरमियाँ बाक़ी रहा
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